रंग बिरंगी Sambhar नगरी में होली पर भगवान नंदकेश्वर मेले की धूम,
Sambhar Lake। वैसे तो पूरे देश में होली का त्योहार काफी धूम-धाम से मनाया जाता है पर सांभर की होली पूरे विश्वभर में मशहूर है। रंग बिरंगी सांभर नगरी में धुलंडी के दिन भगवान नंदकेश्वर का मेला लगता है। जो पूरे विश्वभर में अलग ही स्थान रखता है। Sambhar का यह मेला जो कि लगभग १७०० साल पुराना है वह अपने आप में ही एक पर्यटन आइकन है। जिसे देखने के लिए देशी व विदेशी पर्यटकों का जमावड़ा लगता है।
वही सांभर में होने वाले तमाशे व नवमी को छोटे नंदकेश्वर की घेर भी लोगों को खूब आकर्षित करती हैं। सांभर में होली पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम होते हैं जो सांभर के अलावा अन्य कहीं देखने को नहीं मिलते हैं। सांभर से बाहर रहने वाले लोग भी बड़े उत्साह के साथ होली पर्व मनाने सांभर आते हैं। सैकड़ों साल पुरानी परम्परा के तहत धुलंडी के दिन भगवान नन्दकेश्वर की सवारी पूरे हर्षोल्लास के साथ निकाली जाती जो विश्वभर में प्रसिद्ध हैं।
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यह परम्परा चौहान शासक गोगराज के समय में संवत 600 में प्रारंभ होने का प्रमाण जयपुर में स्थित म्यूज़ियम में धरोवर के रूप में रखी गई हस्त लिखित पुस्तक चौहानो के राजवंश नामक पुस्तक में विस्तार से वर्णन बताया गया है।भगवान नन्दकेश्वर की सवारी पूरी रस्मो रिवाज के साथ पूजा अर्चना करने के बाद नन्दकेश्वर सेवा समिति एंव पुलिस व प्रशासन के आला अधिकारियों की देखरेख में व्यवस्थित रूप से निकाली जाती हैं। इस सवारी को वर्तमान में विजय व्यास द्वारा भगवान नन्दकेश्वर का मुकुट रूप धारण किया जाता हैं।
नन्दकेश्वर का रूप धारण करने वाले नंगे पांव ही इस सवारी को पूरे सांभर में भ्रमण करते हैं। मेले में भगवान नन्दकेश्वर की सवारी छोटे बाजार से रवाना होकर कस्बे के श्री सूर्यनारायण मन्दिर, छोटा बाजार, मालियों का चौक, किला, पीर का कुआ, हथाई, धानमण्डी, लम्बीगली, लालबाबा का अखाड़ा व हरदेव उस्ताद का अखाड़ा पर श्री नन्दकेश्वर की सवारी के अलौकीक रूप के दर्शन तथा नृत्य देखकर जनसमूह अभिभूत हो जाता है।
मेले की वापसी में छोटे बाजार में मेला विसर्जन से पूर्व का माहौल मस्तीभरा होता है, सवारी के साथ हजारों लोग ढोल, मंजीरे, झांझरे, चंग बजाते तथा लावणियां गाते, नाचते, विचित्र वेशभूषा में गुलाल उड़ाते चलते हैं। तथा अलग – अलग टोलियों में होली के गीत गाते हुए नाचते हुए मेला की शोभा बढ़ाते है।
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स्थानीय नागरिको के साथ ही आस पास के ग्रामीण भी अपने अपने ढोल लेकर नाचते गाते मेले का आनंद चौगूना करते हैं वहीं अनेक युवा, बुजुर्ग अनेक प्रकार की विचित्र मनमोहक रूप धारण कर झांकियों की प्रस्तुती से जनता का मन मोहते हुए भरपूर मनोरंजन भी करते है। पूरी सांभर नगरी इस दिन विभिन्न रंगो की गुलाल से अटी रहती है।
इस मेले में सभी वर्ग के लोग बिना जातिगत अथवा अन्य किसी भी भेदभाव के मिलजुलकर भाग लेते है तथा सामाजिक सौहार्द का परिचय देते है। सवारी को भगवान शंकर का रूप मानकर जगह जगह स्वागत सत्कार कर, लोग पूजा अर्चना कर आरती उतारते हैं, एंव मनौतियां मांगते हैं। इसी प्रकार सांभर में होली पर्व अनूठे रूप में मनाया जाता है।
नन्दकेश्वर मेला हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल :-
मेला हिन्दू मुस्लिम एकता का परिचायक भी है। भगवान नन्दकेश्वर की सवारी जब पुरानी धानमण्डी में पहुंचती हैं तो वहां मुस्लिम समाज के लोगों द्वारा हर वर्ष दरगाह के सामने स्वागत किया। जो हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल है।
सांभर नंदकेश्वर मेले को पर्यटन मानचित्र पर मिली पहचान :-
श्री नन्दकेश्वर सेवा समिति के अध्यक्ष कुलदीप व्यास ने जयपुर में राजस्थान पर्यटन मंत्री विश्वेन्द्र सिंह से मुलाकात कर नंदकेश्वर मेले एवं तमाशा को पर्यटन मानचित्र पर स्थान देकर उभारने हेतु आग्रह किया। जिसे पर्यटन मंत्री ने उचित मानते हुए नंदकेश्वर मेले एवं तमाशा को पर्यटन मानचित्र पर स्थान देकर पर्यटन विभाग की ओर से तीन लाख रुपए की राशि मेले के आयोजन हेतु स्वीकृति प्रदान की। जिससे मेले के आयोजन व भव्यता में ओर चार चांद लग सकेगा।
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