राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्य का बजट (Raj Budget 2022) पेश करते हुए बुधवार को बड़ी घोषणा की है। उन्होंने राज्य में पुरानी पेंशन (old pension scheme) व्यवस्था को फिर से लागू करने का ऐलान कर दिया है। राजस्थान में 1 जनवरी 2004 के बाद नियुक्त हुए सरकारी कर्मचारियों को इसका फायदा मिलेगा। इस बड़े ऐलान के बाद पूरे देश की सरकारों का सियासी पारा एक झटके में ऊपर चढ़ा दिया है। राजस्थान में कर्मचारी जहां गहलोत सरकार के इस फैसले से खुश हैं, वहीं कई प्रदेशों में पुरानी पेंशन योजना (old pension scheme) लागू करने की मांग को लेकर किये जा रहे आंदोलनों को इस घोषणा से आग मिल गई है। खास बात यह है कि उत्तर प्रदेश के चुनावों में विपक्षी पार्टियों ने भी पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने को बड़ा मुद्दा बना रखा है।
कर्मचारियों को राहत की सौगात
राजस्थान के विपक्षी नेता भी गहलोत सरकार के इस फैसले पर बिफर पड़े हैं। क्योंकि बिना किसी आंदोलन और चुनावी वादे के सरकार ने अपने कर्मचारियों को यह बड़ी राहत की सौगात के तौर पर दे दी है। मुख्यमंत्री ने बजट (Raj Budget 2022) घोषणा करते हुए कहा कि ‘सरकारी सेवाओं से जुड़े कर्मचारी भविष्य के प्रति सुरक्षित महसूस करें और वाकाल में सुशासन के लिए अपना अमूल्य योगदान दे सकें इसलिए उन्होंने आगामी वर्ष से पूर्व पेंशन योजना लागू करने की घोषणा की है। सिर्फ इतना ही नहीं इसके साथ ही उन्होंने बजट में कर्मचारियों की पेंशन के लिए वेतन कटौती के पुराने फैसले को भी वापस लेने की घोषणा की है। पिछली वसुंधरा सरकार ने साल 2017 में कर्मचारियों की पेंशन के लिए वेतन में कटौती का ऐलान किया था। इस घोषणा से राजस्थान सरकार पर 1000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा लेकिन मुख्यमंत्री अपने कर्मचारियों को खुश करने के लिए आर्थिक परेशानियों के बावजूद इसे मैनेज करने की मंशा रखते हैं।
केंद्र ने दिया था एक विकल्प
अब सवाल यह है कि पुरानी पेंशन योजना लागू होने पर देश का सियासी पारा क्यों चढ़ गया है। दरअसल देश में करीब 2 करोड़ सरकारी कर्मचारी हैं ऐसे में सरकार के लाखों कर्मी, जो पहली जनवरी 2004 के बाद नौकरी में आए हैं, वह पुरानी पेंशन व्यवस्था से बाहर कर हो गए थे। सेना को छोड़कर बाकी विभागों के कर्मचारी, जिनमें केंद्रीय अर्धसैनिक बल भी शामिल हैं, वे सब राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के दायरे में आ गए थे हालांकि सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची कुछ लड़ाईयों के बाद केंद्र सरकार ने कर्मचारियों को एक विकल्प ज़रूर दिया कि जो कर्मी 31 दिसंबर 2003 को या इससे पूर्व होने वाली भर्तियों जिनके परिणाम एक जनवरी 2004 से पूर्व घोषित किए गए थे, को केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियमावली, 1972 के तहत कवर किए जाने के लिए एक बार विकल्प दिया जा सकता है। लेकिन यह भी इसलिए सफल नहीं हो सका क्योंकि कई लोगों जिनका चयन 2003 में हो चुका था को जॉइनिंग फरवरी 2004 में मिली थी, ऐसे में सभी लोग इस विकल्प के दायरे में नहीं आ रहे थे।
देश का सियासी पारा चढ़ा
पुरानी पेंशन योजना की मांग को लेकर नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम के बेनर तले केंद्र सरकार के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन चलाया जा रहा है। इसके अतिरिक्त चुनावी राज्य उत्तर प्रदेश से लेकर, झारखंड, हिमाचल प्रदेश तक ओल्ड पेंशन स्कीम की मांग कई कर्मचारी कर रहे हैं। ऐसे में गहलोत सरकार का यह ऐलान उन सभी राज्यों के लिए गले की हड्डी बन गया है जो सिर्फ चुनावी घोषणाओं के नाम पर पुरानी पेंशन बहाली के मुद्दे को भुना कर वोटों की राजनीति करते हैं।